कुनकुनी धूप खिली है वादियों में
रश्मियों ने पैर पसारे घर के आँगन में
प्रातः का मंजर सुहाना हो गया
गीत गाए दिल खोल परिंदों ने |
व्योम भरा है उड़ते पक्षियों के गुंजन से
अनोखी छटा छाई है लाल सुनहरे अम्बर में
झूमती खेतों में बालियाँ दृश्य मनोरम है
लयबद्ध कलरव उड़ते उडगन का मन को बांधे हैं |
प्रातः की बेला में जब मंद हवाओं के झोके आए
आदित्य चला देशाटन को रथ पर हो कर सवार
धूप का आनंद उठाते जीव जीवन्त हो जाते
सब कार्यों में व्यस्त हो जाते आगमन भोर का होते ही |
गृहणियां चौके में जातीं वहां का कार्य प्रारम्भ करतीं
बच्चे भी दौड़े आते हलुए की फरमाइश करते
जब अल्पाहार करते चहरे पर मुस्कान लिए
भाव संतुष्टि के आते बड़ा सुकून देते |
आशा
बहुत सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-10-2021) को चर्चा मंच "शरदपूर्णिमा पर्व" (चर्चा अंक-4223) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks for information of my post
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंउजली सुबह का बड़ा ही मनोरम चित्रण !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना चिर प्रतीक्षित टिप्पणी के लिए |
वाह! सुबह का खूबसूरत वर्णन करती हुई बहुत ही सुंदर व प्यारी रचना!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |