28 अक्टूबर, 2021

वन्दना

 

एहसास तेरी महिमा का है उसे 

 

वह  मंदिर की घंटी की गूँज से

तेरी उपस्थिति जान लेती है 

तुझे पहचान लेती है |

मंद हवा का झोका  जब आता 

उसमें बसती सुगंध में   

वह अपनी हाजरी दर्ज कराती 

मन को वहीं खींच ले जाती |

प्यारी सी छवि तेरी हे माँ

उसके मन को छू गई 

उसमें डूबे रहने में 

उसे बड़ा सुकून मिलता|

यदि कभी मन

 होता वह गाती गुनगुनाती 

तार वीणा के झंकृत होते 

वह तुझ में खो जाती |

जब से तेरा वरद हस्त है सर पर 

मन को बड़ी संतुष्टि मिली उसे 

चाहती सुख  शान्ति चहु ओर

दिन रात खोई रहती तेरी वन्दना में | 

आशा 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद आलोक जी |

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२९-१०-२०२१) को
    'चाँद और इश्क़'(चर्चा अंक-४२३१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना की चर्चा मंच पर सूचना के लिए आभार अनीता जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. भक्ति भाव से युक्त सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

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