एहसास तेरी महिमा का है उसे
वह मंदिर की घंटी की गूँज से
तेरी उपस्थिति जान लेती है
तुझे पहचान लेती है |
मंद हवा का झोका जब आता
उसमें बसती सुगंध में
वह अपनी हाजरी दर्ज कराती
मन को वहीं खींच ले जाती |
प्यारी सी छवि तेरी हे माँ
उसके मन को छू गई
उसमें डूबे रहने में
उसे बड़ा सुकून मिलता|
यदि कभी मन
होता वह गाती गुनगुनाती
तार वीणा के झंकृत होते
वह तुझ में खो जाती |
जब से तेरा वरद हस्त है सर पर
मन को बड़ी संतुष्टि मिली उसे
चाहती सुख शान्ति चहु ओर
दिन रात खोई रहती तेरी वन्दना में |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद आलोक जी |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२९-१०-२०२१) को
'चाँद और इश्क़'(चर्चा अंक-४२३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की चर्चा मंच पर सूचना के लिए आभार अनीता जी |
भक्ति भाव से युक्त सुन्दर रचना !
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