किसी के सामने न झुकना
कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए
यह तो शारीरिक व्यथा है
पर मन के कष्ट का क्या ?
कभी सोचा हो या नहीं तुमने
मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो
किसी पर झुको या न झुको
या उसमें ही खो जाओ
स्वाभिमान ही भूल जाओ |
पर जब समय बीत जाएगा
कोसना न मन को अपने
कहना नहीं किसी ने बताया नहीं
किसी के सामने इतना न झुकना
कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए |
यह तो शारीरिक व्यथा है
पर मन के कष्ट का क्या ?
कभी सोचा या नहीं |
मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो
किसी पर झुको या न झुको
या उसमें ही खो जाओ
स्वाभिमान ही भूल जाओ |
पर जब समय बीत जाएगा
कोसना न मन को अपने
कहना नहीं किसी ने बताया नहीं
कोई क्या समझाए कितना समझाए |
घूमना न हर बार की तरह मुंह लटकाए
ना ही दोष देना अपने आप को
कभी कोई बात भी गंभीर हो सुन लेना मेरी
मैं दुश्मन तो नहीं जो गलत बात करूंगी |
हूँ मित्र तुम्हारी जानों य न जानों
मैं जिस्म हूँ और जान तुम्हारी
तुम मानो या न मानो पर मुझे एहसास है
तुम से दूर नहीं हूँ तुम्हें समझती हूँ |
किसी के सामने नत मस्तक न होना
अडिग अपनी बातों पर रहना
यही शोभा देता है तुम्हें
तुम जैसा मेरे लिए कोई नहीं है |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
बहुत बढ़िया यथार्थ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
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