21 नवंबर, 2021

इतना न झुकना

 

                 किसी के सामने न झुकना  

कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए 

यह तो शारीरिक व्यथा है

पर मन के कष्ट का क्या ?

कभी सोचा हो या नहीं तुमने  

मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो

किसी पर झुको या न झुको

या उसमें ही खो जाओ

 स्वाभिमान  ही भूल जाओ |

पर जब समय बीत जाएगा

कोसना न मन को अपने  

 कहना नहीं किसी ने बताया नहीं  

किसी के सामने इतना न झुकना  

कि तुम्हारी गर्दन में बल आजाए |

यह तो शारीरिक व्यथा है 

पर मन के कष्ट का क्या ? 

कभी सोचा या नहीं | 

मुझे क्या तुम्हारी जो इच्छा हो 

किसी पर झुको या न झुको 

या उसमें ही खो जाओ 

 स्वाभिमान ही भूल जाओ |

पर जब समय बीत जाएगा 

कोसना न मन को अपने  

 कहना नहीं किसी ने बताया नहीं 

कोई क्या समझाए कितना समझाए |   

घूमना न हर बार की तरह मुंह लटकाए 

ना ही दोष देना अपने आप को  

कभी कोई बात भी गंभीर हो सुन लेना मेरी 

मैं दुश्मन तो नहीं जो गलत बात करूंगी |

हूँ मित्र तुम्हारी जानों य न जानों  

मैं जिस्म हूँ और जान   तुम्हारी 

तुम मानो या न मानो पर मुझे एहसास है

तुम से दूर नहीं हूँ तुम्हें समझती  हूँ | 

किसी के सामने नत मस्तक न होना 

अडिग अपनी बातों पर रहना

 यही शोभा देता है  तुम्हें 

तुम जैसा मेरे लिए कोई नहीं है |

आशा  

    





    

5 टिप्‍पणियां:

Your reply here: