19 नवंबर, 2021

कर्म या भाग्य

 


दुनिया देखी जब से  

भाँति  भाँति  के रंगों से नहाई

हर रंग जमाए अपनी धाक 

 शेष रंग रहे बेताव |

दिखा असंतोष उनमें आपस में  

वही करते रहे प्रलाप

 उनको कोई स्थान न मिला  

 यह कैसा न्याय मिला |

क्या यही समानता की है परिभाषा

जो मांगे सब मिल जाता है

यह कहा झूटा नहीं क्या? 

“बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख” |

है यह कैसा न्याय प्रभू

किसी को दिया धान  भर झोली 

किसी को केवल आशीर्वाद

 मेरे भाग्य में दोनो न थे

मैं रहा सदा खाली हाथ |

अक्सर कहा जाता कर्म प्रधान होता 

कोई कहता भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता 

मैं उलझा शब्दों की तलैया में

बाहर निकलने की राह न मिली |

वहां खड़ा हो सोच रहा कैसे बाहर आऊँ 

 जितनी बार यत्न किया

सर पटक कर रह गया

निकल न पाया भूलभुलैया में  से |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन दर्शन से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचना ।

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  2. सुप्रभात आभार यशोदा जी मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए |

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद जिज्ञासा जी टिप्पणी के लिए |

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  4. मन की उहापोह
    सुन्दर सृजन।

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  5. वाह ! बहुत ही सुन्दर सशक्त रचना ! अति सुन्दर !

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  6. सुप्रभात
    साधना धन्यवाद टिप्पणी के लिए |

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