कंचन काया देखी जब चिलमन से
चेहरे पर मधुर मुस्कान लिए
एक झलक देखने को तरसा
नींद तक बैरी हुई मेरी |
जब भी पलकें बंद करता हूँ
तुम्ही नजर आने लगती हो
कभी यहाँ कभी वहां थिरकती
घूमती रहतीं मेरे आस पास |
मुझे जूनून सा हो गया है
तुम्हारी एक झलक देखने को
तुम्हें पाने को अपनाने को
तुम पर अधिकार जताने का मन है |
अपने मन की सारी बातें
तुमसे करने का तुमसे सलाह लेने का
आज तक मैंने किसी को नहीं देखा
जो हो निष्पक्ष सलाहकार निर्णयकर्ता
बात यदि कटु भी हो सही सलाह देती|
मुंह देखी बात नहीं करती
हलकी सी मुस्कान से
मन को शांत कर देती
बेचैन नहीं रहने देती |
मेरा मन कहता है
तुम बनी हो मेरे लिए
प्यार मुझसे ही करती हो
कह नहीं पाती तो क्या ?
समाज से जो बंधी हो |
अब जल्दी से आजाओ
मुझ से राह नहीं देखी जाती
सदा बेचैन किए रहती
हूँ अधूरा तुम्हारे बिना |
आशा
वाह ! क्या बात है ! बढ़िया प्रस्तुति !
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