है
यह
सहज
सरलता
लिए हुए है
कोई भी उपाय
कठिन न उसके
सहज योग अच्छा है
संबल योग का उसका |
तुम
दौनों ही
हमदम
न दूसरा है
मैंरी प्रेरणा
तुम ही केवल
तुम पर है आस्था
तुम गुरू मेरे लिए
नमन तुम को दिल से |
हे
प्रभू
मुझे दो
आसरा ही
हे दया निधान
रखो सदा अपनी
छत्र छाया में मुझको
हो दया द्रष्टि भी साथ में |
है
अब
कहाँ से
मन को जाना
कितनी बाधाएं
पार न कर सका
दुनिया के जंजाल से
खुद को निकाल न पाया |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२०-११-२०२१) को
'देव दिवाली'(चर्चा अंक-४२५४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सात स्वतन्त्र पँक्तियाँ और
जवाब देंहटाएंकिसी दो पंक्ति में तुकांत
होने से वर्ण पिरामिड बनता है
–पुनः प्रयास कर लें
सादर
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद विभा जी टिप्पणी के लिए |मैं फिर से प्रयत्न करूंगी इन पर कार्य करने के लिए |
सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंसुप्रभात धन्यवाद विकास जी टिप्पणी के लिए |
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