कभी अहम् कभी गरूर
कहाँ से आते आम आदमीं में
क्या कोई विशेष कक्षा होती
इन बातों की शिक्षा के लिए |
जब कक्षा में पढ़ने जाते
कुछ भी अच्छा नहीं सीख पाते
दुर्गुण पीछा नहीं छोड़ते
चलती राह में भी उसे पकड़ते |
उन पर जब आत्म मंथन करते
उन विचारों पर मनन करते
मन ग्लानि से भर जाता
क्षण भर में ही मन में घर कर जाता |
जब अपनी आदतों का विश्लेषण करते
खुद से वादा करते बारम्बार
गलत राह पर न चलने का
मन को वश में रखने का |
यही यदि मन में दृढ़ता होती
दृढ़ संकल्प लेते कुछ गलत न करते
पलट कर न देखते उस ओर
तभी सफल जीवन होता
पैर न फिसल पाता |
आशा
सच है बहुत बढ़िया भाव
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंगहन भाव समेटे सार्थक रचना !
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