कान्हां संग नेह लगाया
वह कान्हां सी हो गई
ना मीरा बनी न जोगन
ना ही सिद्ध हस्ती हुई |
सारा जग त्याग दिया
माया मोह छोड़ दिया
ममता न की किसी से
निर्मोही हो कर रह गई |
दुनियादारी से हुई दूर
आध्यात्म की ओर झुकी
झुकती ही गई फिर भी
शान्ति को न खोज सकी |
कान्हां मय होती गई
दिन रात ध्यान में लीन हुई
अब मन की बेचैनी दूर हुई
वह कान्हां में खो गई |
आशा
सच्ची भक्ति में बड़ी शक्ति है
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
कान्हा की तो बात ही निराली है। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद नितीश जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच में आज शामिल करने के लिए |
धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |