02 दिसंबर, 2021

प्रकृति की उपस्थिति में प्रेम


 

शबनम में भीगा गुलाब

मौसम का हाल बताता

पत्तों पर ओस नाचती

जाड़ों का एहसास कराती |

पारीजात की श्वेत चादर 

बिछ गई वृक्ष के नीचे 

उस पर घूमें चहल कदमीं करें 

तन मन को महकालें |

किया प्यार का इजहार  

कब कहाँ  किससे सीखा

बताना आवश्यक नहीं था क्या ? 

 मैं अनजान रही उससे |

भोर का चमकता सितारा

अम्बर में अकेला दमकता रहा

    चन्द्रमा को साथ ले    

 कब हुआ ओझल जान नहीं पाई |

 है सूर्य रश्मियों की सलाह

या नीला आसमान गवाह  

कौन कब मन भाया

 यह तक नहीं जताया |

होकर कुशल चितेरे तुमने

 रंग भरे कोरे कागज़ पर  मेरे जीवन के     

कुछ नयनों में बस गए ऐसे  

   कानों में की चहचहाहट पक्षी बन के    | 

 और भोर का आगाज हुआ 

मेरा जीवन रंगीन हुआ 

रात दिन कब बीते 

अब यह तक याद नहीं |

आशा 

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०३-१२ -२०२१) को
    'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-४२६७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद टिप्पणी के लिए सुधा जी |

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद भारती जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  5. वाह वाह ! बहुत ही सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: