शबनम में भीगा गुलाब
मौसम का हाल बताता
पत्तों पर ओस नाचती
जाड़ों का एहसास कराती |
पारीजात की श्वेत चादर
बिछ गई वृक्ष के नीचे
उस पर घूमें चहल कदमीं करें
तन मन को महकालें |
किया प्यार का इजहार
कब कहाँ किससे सीखा
बताना आवश्यक नहीं था क्या ?
मैं अनजान रही उससे |
भोर का चमकता सितारा
अम्बर में अकेला दमकता रहा
चन्द्रमा को साथ ले
कब हुआ ओझल जान नहीं पाई |
है सूर्य रश्मियों की सलाह
या नीला आसमान गवाह
कौन कब मन भाया
यह तक नहीं जताया |
होकर कुशल चितेरे तुमने
रंग भरे कोरे कागज़ पर मेरे जीवन के
कुछ नयनों में बस गए ऐसे
कानों में की चहचहाहट पक्षी बन के |
और भोर का आगाज हुआ
मेरा जीवन रंगीन हुआ
रात दिन कब बीते
अब यह तक याद नहीं |
आशा
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०३-१२ -२०२१) को
'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-४२६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सुधा जी |
लाजबाव सृजन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद भारती जी टिप्पणी के लिए |
बहुत ही सुंदर😍💓
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |
वाह वाह ! बहुत ही सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |