रूप रंग स्वभाव तुम्हारा
जलवा तुम जैसा
है ही ऐसा
हो तुम सब से जुदा |
तुम्हारा मन किसी से
मेल नहीं खाता
देख कर किसी को भी
अंतरमुखी हो जाता |
सब चाहते तुमसे
मिलना जुलना बातें करना
पर तुम्हें है पसंद
गुमसुम रहना |
भूले से यदि मुस्कुराईं
मन को भी भय होता
यह बदलाव कैसा
यह क्या हुआ ?
हो गुमसुम गुड़िया जैसी
कोई समस्या नहीं तुम में
तुम्हारा स्वभाव है जन्म जात या
परिस्थिति वश मालूम नहीं |
तुम्हें समझना है कठिन
सहज कार्य नहीं है
बोलने में हो कंजूस पर
मुस्कुराने में कमी नहीं |
जो भी देखता एकटक तुम्हें
पलकें तक नहीं झपकतीं
देखता ही रह जाता
अनुपम आकर्षण तुम्हारा |
तुम हो लाखों में एक
हो गुण सम्पन्न इतनी
किसी से कम नहीं हो
एक झलक ही तुम्हारी है अनुपम |
आशा
बेहतरीन भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(5-12-21) को "48वीं वैवाहिक वर्षगाँठ"
( चर्चा अंक4269)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
Thanks for the information of the post
हटाएंक्या बात
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
अरे वाह ! कौन है यह अपरूप सुंदरी ! बहुत बढिया रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |