04 दिसंबर, 2021

जलवा तुम्हारा


  

रूप रंग स्वभाव तुम्हारा  

 जलवा तुम जैसा  

 है ही  ऐसा

हो तुम  सब से  जुदा |

तुम्हारा मन किसी से

 मेल नहीं खाता

देख कर किसी को भी

 अंतरमुखी हो जाता |

सब चाहते तुमसे 

मिलना जुलना बातें करना

पर तुम्हें है  पसंद

 गुमसुम रहना |

भूले से यदि मुस्कुराईं

मन को भी भय  होता

 यह बदलाव कैसा 

 यह क्या हुआ ?

हो गुमसुम गुड़िया जैसी  

कोई समस्या नहीं तुम में 

 तुम्हारा स्वभाव है जन्म जात  या

 परिस्थिति वश मालूम नहीं |

तुम्हें समझना है कठिन

सहज कार्य नहीं है 

बोलने में हो कंजूस पर

 मुस्कुराने में कमी नहीं |

जो भी देखता एकटक तुम्हें 

पलकें तक नहीं झपकतीं 

देखता ही रह जाता 

 अनुपम आकर्षण तुम्हारा | 

तुम हो लाखों में एक

 हो गुण सम्पन्न इतनी   

किसी से कम नहीं हो 

एक झलक ही  तुम्हारी है अनुपम |

आशा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
    (5-12-21) को "48वीं वैवाहिक वर्षगाँठ"
    ( चर्चा अंक4269)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  4. अरे वाह ! कौन है यह अपरूप सुंदरी ! बहुत बढिया रचना !



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