09 जनवरी, 2022

हूँ कितनी सक्षम


 

हूँ कितनी सक्षम

 अपने आप में

जब बर्तोगे मुझे 

 तभी जान पाओगे |

कहने सुनने की 

आवश्यकता नहीं

खुद देखोगे तभी

 निर्णय ले पाओगे |

 है कितना विश्वास

 खुद पर मुझे  

हूँ समर्थ मन से  

किसी की आश्रितं नहीं मैं 

  यही विश्वास दिलाना 

चाहती हूँ तुम्हें भी 

अपनी क्षमता जान

 कदम बढाए मैंने

किसी कार्य को करने से

 भय भीत नहीं मैं |

हूँ आज की नारी

 पहले सी कमजोर नहीं हूँ 

अपने कर्तव्य व अधिकारों को

खूब समझती हूँ |

  समाज के  नियमों का

 पालन करती हूँ 

केवल  अधिकारों की चाहत ही    

 नहीं हैं प्रिय मुझे |

 कर्तव्य ही सब से पहले

पूर्ण  करती हूँ  

किसी की रोकाटोकी

मुझे नहीं भाती |

यही आदत मुझे

 सब का बुरा बनाती  

फिर भी अपनी सीमाएं

 पहचानती हूँ |

 हूँ आज के भारत की नारी

यही क्या कम है   

किसी बैसाखी की 

आवश्यकता नहीं मुझको |

किसी भी क्षेत्र में अपनी 

 सफलता सिद्ध कर सकती हूँ 

अपना संरक्षण खुद

 कर सकती हूँ |

आशा 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच     "सन्त विवेकानन्द"  जन्म दिवस पर विशेष  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. सुप्रभात
      आभार शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए |

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार सहित धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |

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  3. बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |

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  4. हूँ आज की नारी
    पहले सी कमजोर नहीं हूँ
    अपने कर्तव्य व अधिकारों को
    खूब समझती हूँ |
    बहुत ही उम्दा लाजवाब सृजन..!

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |

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  5. वाह ! आत्मनिर्भर सशक्त नारी के मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !

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