किसी बालक पर प्यार न आया
क्या कारण हुआ जान न
पाया
बचपन में की शैतानी जी भर
मां को शर्म आती हमारी शरारतों पर |
कहना नहीं मानने से गालों पर
दो चार चांटे पड़ ही
जाते
लाल लाल गाल हो जाते
मटका भर आंसू बह जाते |
कुछ काल बाद भूल भी जाते
किस वर्जना की सजा मिलती
अनुशासन थोपे जाने की कमी न थी
अब आदत हो गई वे कार्य न करने की|
जिस परिवेश में पले बड़े
हुए
वैसा हमारा स्वभाव हो गया
बस थोड़ा सा फर्क हुआ अब
बच्चों को दण्ड नहीं देते थे |
पर उन्हें साथ ले जाने से कतराते
ज्यादातर घर में ही छोड़ने लगे
टीवी और खिलोनों के सहारे
छोटे बड़े प्रलोभन दे कर |
वे और उद्दंड हो गए
बिना किसी नियंत्रण के
कोई तरकीब न सूझी
उनसे कैसा हो व्यवहार |
मन में बेचैनी बढी
मेरा मन उचटने लगा
प्यार मन में ही
सिमट कर रह गया |
अब कोई प्यार नहीं उमढ़ता
उनकी शरारतें देख
कहना न मानना उनका
मन को दुखी करता
अब प्यार नहीं उमढता|
आशा
आशा
शरारत बच्चे नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? बुजुर्गों की तरह मुँह लटकाए थोड़े ही बैठे रहेंगे बच्चे ! बस उन पर थोड़ा नियंत्रण ज़रूरी है जिससे वे उद्दंड न हों ! डाँटना मारना कोई समाधान नहीं समस्या का !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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