22 फ़रवरी, 2022

अनुग्रह भजन का


 

अचानक  जब नजर पडी

देखी अनौखी वस्तु वस्त्र में लिपटी 

पहले कभी देखी न थी

जानने की उत्सुकता जागी  |

वह  कोई पुस्तक न थी

नाही कोई दस्तावेज

जितनी बार देखा उसे

पता नहीं चल पाया है वह क्या |

उलटा पलता ध्यान से पढ़ा

एकाएक दृष्टि पड़ी लिखा था

 बहुत ही व्यक्तिगत 

उत्सुकता ने की ध्रष्टता  |

सीमा लांघी मर्यादा की

केंची  से काटा खोला लिफाफा 

एक सांस में पढ़ना चाहा

न था आसान उसे पढ़ना |

वे थे पत्र किसी के  लिखे हुए  

भेजे गए अपने इष्ट को

जिन पर किसी का नाम नहीं था

केवल हरी का नाम लिखा था |

मन झूम झूम कर गाने लगा

ॐ हरिओम राधे राधे श्री सरकार

भगवत भजन का था  अनुग्रह 

जो उन पत्रों में किया गया था |

मेरा भी मन आत्मविभोर हो गया 

फिर भूली सुध आई लौट कर 

श्री राम और सीता माता  की 

 अपने मन मोहन की छवि की 

आशा 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-02-2022) को चर्चा मंच     "हर रंग हमारा है"    (चर्चा अंक-4349)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  2. सुप्रभात
    आभार सर मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

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  3. भक्तिरस में डूबी सुंदर रचना

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  4. धन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए

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