31 मार्च, 2022

परछांई

 




भरी धूप में 

सूर्य की गर्मीं सर पर

तुम्हारी परछाईं  चलती

 कदमों में तुम्हारे

जैसे ही आदित्य आगे बढ़ता

 परछाईं भी बढ़ती आगे 

पर साथ कभी ना छोड़ती 

शाम को वह भी घर आती साथ तुम्हारे

तुम सोते वह भी सो जाती

तुम में विलीन हो जाती |

काश मैं तुम्हारी परछाईं बन पाती

अपने भाग्य को सराहती

 तुम्हें अपने करीब पा कर

सभी ईर्ष्या करते मेरे भाग्य से |

मुझे है पसंद रहना करीब तुम्हारे   

परछाईं बन कर साथ रहना तुम्हारे 

कम ही लोग होते इतने भाग्यशाली 

तुमसे जुड़े रहते साथ जन्म जन्मान्तर तक|

आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (01-04-2022) को चर्चा मंच       "भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान"   (चर्चा अंक-4387)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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    1. आभार सहित धन्यवाद सर मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने की सूचना के लिए |

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  2. परछाईं का तो धर्म ही होता है साथ रहना ! बहुत प्यारी अभिव्यक्ति !

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  3. शाम को वह भी घर आती साथ तुम्हारे

    'तुम सोते वह भी सो जाती

    तुम में विलीन हो जाती |'- खूबसूरत अहसास !

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    1. सुप्रभात
      धनुवाद गजेन्द्र जी मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए |

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