17 मार्च, 2022

तृष्णा

 

                  माया, तृष्णा ,मोह ,मद

चारों नरक के द्वार

जीव फंसा बीच में 

बंद हो गया द्वार |

सोच में ऐसा उलझा

बाहर  निकल न पाया

 सोने के पिजरे से

पञ्च तत्व के  पिंजर से  |

मोह ने पीछे से जकड़ा ऐसे

तृष्णा बढी बढ़ती गई

कोई सीमा न रही उसकी  

मद हुआ सर पर सवार |

 भूलवश दरवाजा पिंजर का

 जब खुला रह गया

जीव उड़ चला पंख पसार

खुले आसमान में |

आशा

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