माया, तृष्णा ,मोह ,मद
चारों नरक के द्वार
जीव फंसा बीच में
बंद हो गया द्वार |
सोच में ऐसा उलझा
बाहर निकल न पाया
सोने के पिजरे से
पञ्च तत्व के पिंजर से |
मोह ने पीछे से जकड़ा ऐसे
तृष्णा बढी बढ़ती गई
कोई सीमा न रही उसकी
मद हुआ सर पर सवार |
भूलवश दरवाजा पिंजर का
जब खुला रह गया
जीव उड़ चला पंख पसार
खुले आसमान में |
आशा
दार्शनिक चिंतन से युक्त परिपक्व रचना ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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