06 मार्च, 2022

सफलता तक पहुंची


 

दिग दिगंत में आसपास

कोई खींच रहा था उसको अपने पास 

 उस में खो जाने के लिए

जीवन जीवंत बनाने के लिए |

जागती आँखों से जो देखा उसने

 स्वप्न में न  देखा था कभी जिसे 

वह  उड़ चली व्योम में ऊंचाई तक

पर न पहुँच पाई आदित्य तक |

 ताप सहन न कर पाई जो था आवश्यक

गंतव्य तक पहुँचने  के लिए

उसने सफलता को जब  नजदीक पाया

मन खुशियों से भर आया |

सफलता उसने इतने करीब देखी न थी

 नैना भर आए थे उसके यह देख

दोबारा कोशिश की फिर से  

अब दूरी कुछ कम हुई दौनों में

पर पूरी तरह  सफल न हो पाई |

 आत्मविश्वास मन में आस्था ईश्वर पर   

 नाम लिया नटनागर का साहस जुटाया

अब आसान हुआ वहां पहुँच मार्ग

 चमक सफलता की रही  चेहरे पर |

आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07 मार्च 2022 ) को 'गांव भागते शहर चुरा कर' (चर्चा अंक 4362) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

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  4. मन के हारे हार है मन के जीते जीत । बहुत बढ़िया रचना ।

    जवाब देंहटाएं

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