प्यार क्या है दुलार किस लिए
यह दिखावा किस लिए किसके लिए
मन से तो ये भाव उपजते नहीं
क्या हो गया उसे |
वह उलझी रहती दिखावे में
वह है कितनी अलग सबसे
अपने इस सतही व्यवहार में
प्रयत्न अथाह किये उसने |
असफलता ही हाथ लगी
मन के भाव छिपाने में
यह भी स्पष्ट नहीं मन में
अब वह क्या करे |
किससे सहायता मांगे
मन की गुत्थी सुलझाने में
न जाने क्यों भय बना रहता है
कोई उससे दगा तो नहीं करेगा |
यह संशय पनपा कैसे
एक बार धोखा खाया है उसने
अब तो नजदीक जाने से भी
भय लगता है उसके |
कभी सोचती है मन के बारे में
वह इतनी कमजोर तो कभी न थी
भय ने अपना राज्य जमाया कैसे
उसका अस्तित्व ही हिला कर रख दिया |
आत्म विश्वास डगमगाया है
इसी कमजोरी ने पचास साल पीछे किया है
वह उंगली पकड़ कर चलने में
खुद को महफूज समझती है |
प्यार से दुलार से आँखों का पर्दा हटा है
मन का विश्वास जाने कब लौटेगा
उसी पर सोचने की नीव टिकी है
जीवन की सच्चाई यही है |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 06 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुप्रभात
हटाएंआभार रविन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लये |
सुंदर सशक्त रचना । बहुत उम्दा ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |