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नेत्र खोल कर न देखा
जो भी देखा सतही देखा
उस को देख अन्देखा किया
यही हाल मन का भी है
खोए रहे स्वप्नों में
कभी छोटी सी बात भी छेनी सी चुभती
बड़ी बात सर पर से गुज़री |
किसी की बात मन को न चुभी
कोई गहरा घाव कर गई
मुझसे अपेक्षा तो सब रखते हैं
पर कोई जानना नहीं चाहता |
कभी किसी बात को गंभीर होकर न लिया
मेरी अपेक्षा है क्या किसी को न जानने दिया
यही विशेषता का आकलन किया
अपने को कैसे समझाया अब तक न सोचा |
शायद यही जीवाब जीने का अंदाज नया |
आशा
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नेत्र खोल कर न देखा
जो भी देखा सतही देखा
उस को देख अन्देखा किया
यही हाल मन का भी है
खोए रहे स्वप्नों में
कभी छोटी सी बात भी छेनी सी
चुभती
बड़ी बात सर पर से गुज़री |
किसी की बात मन को न चुभी
कोई गहरा घाव कर गई
मुझसे अपेक्षा तो सब रखते हैं
पर कोई जानना नहीं चाहता |
पेक्षा है क्या किसी को न जानने दिया
यही विशेषता का आकलन किया
अपने को कैसे समझाया अब तक न सोचा |
शायद यही जीवाब जीने का
अंदाज नया |
आशा
जीवन का सबसे बड़ा सबक यही कि किसीसे कोई अपेक्षा ही न रखी जाए ! बहुत सार्थक सृजन !
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