26 फ़रवरी, 2022

कैसे उसे समझाऊँ

 


मैं कैसे कोई बात करूं

अपने मन की आगाज सुनूँ या 

किसी के मन की बात पर

 ठहाका लगाऊँ मुस्कराऊँ |

उलझन में फंसी हूँ

मेरा मन क्या सोचता  

सोच किस ओर जाता

अभी तक स्पष्ट नहीं है |

यही डावाडोल होते विचार

मन बहका सा है

 कहा नहीं मानता

कैसे उसे समझाऊँ |

सही राह दिखाने के लिए

कुछ तो दृष्टांत हों

जिनका अर्थ निकलता हो

मन नियंत्रित होता हो | 

आशा 



8 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीया आशा जी, 'मन बहका सा है' से 'मन नियंत्रित होता हो।' की यात्रा ही मन के भटकाव को संतुलित करता है। बहुत सुंदर रचना, खासकर ये पंक्तियाँ:
    मन बहका सा है
    कहा नहीं मानता
    कैसे उसे समझाऊँ |
    सही राह दिखाने के लिए
    कुछ तो दृष्टांत हों
    जिनका अर्थ निकलता हो
    मन नियंत्रित होता हो |
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  4. मन के ऊहापोह को उकेरती सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात
    आभार सदित धन्यवाद विश्व मोहन जी मेरी रचना की टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद मर्मग्य जी मेरी रचना की टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  7. अजी उलझन कैसी ? जो मन कहे वही सुनिए और जो दिल करे वही करिए ! मन के असमंजस को अभिव्यक्ति देती सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  8. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: