क्यों ज़िद पर अड़े हो
कोई काम करते नहीं
उपर से सब को
दोष देते हो |
है यह कैसा न्याय तुम्हारा
औरों की भी सुनो
समस्या समझो
अपनी ज़िद छोड़ो |
तभी तुम्हें सब प्यार करेंगे
अपना समझेंगे
तुम्हारी अहमियत है कुछ
इसे स्वीकार करेंगे |
तुम्हें इतना सम्मान मिलेगा
मन चाहा स्थान मिलेगा
पर यदि जिद नहीं छोड़ी
यह स्थान भी हाथों से निकल जाएगा|
तुम तरसते रह जाओगे
अहंकारी कहलाओगे
बहस में कोई लाभ नहीं होगा |
कुछ करो
कुछ बन कर दिखाओ
यही चाह है सब की
ज़िद में कुछ नहीं रखा है |
आशा
वाह ! सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
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