मुझे उम्मीद न थी 
हर बात पर पक्ष मेरा लोगे 
मुझ पर विश्वास करोगे
तुम मेरे मनमीत बनोगे |
मेरी कल्पना में थी 
एक तस्वीर तुम्हारी 
जब जीवन के पन्नों पर उतरी 
बढाया आत्मबल मेरा |
मनमीत होने का मेरे 
पूरा प्रतिफल दिया तुमने 
मुझे कोई दिक्कत न हुई 
तुम को समझने में |
यही क्या कम है 
तुम में और मुझमें  
तालमेल है गहरा इतना 
तुमको मैं समझती हूँ 
समझे तुम मुझे पूरी तरह |
उम्मीद  यही थी  तुमसे 
अपेक्षा मेरी पूर्ण करोगे 
आशा को निराशा में न बदलोगे
उम्मीद पर खरे उतरोगे |
आशा
 
 
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआभार सहित धन्यवाद आलोक जी |
धन्यवादआलोक
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.3.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4372 में दिया जाएगा| चर्चा मंच ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हासला अफजाई करेगी
जवाब देंहटाएंधनयवाद
दिलबाग
आभार विर्क जी मेरी रचना की सूचना के लिए चर्चामंच पर |
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह ! मन के अनुकूल मनमीत मिल जाए तो फिर और क्या चाहिए जीवन में ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
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