16 मार्च, 2022

दामन की छाँव में



माँ तुम्हारे दामन की छांव में

जो सुकून मिलता था 

भूली नहीं हूँ अब तक

उसके लिए तरसती हूँ अब |

जब भी पुराने अपने मकान के

 सामने से गुजरती हूँ

तुम्हारी आवाज सुनाई देती है  

और तुम्हारी  छवि मेरे आसपास होती है |

मैं आज भी उन यादों से

उभर  नहीं पाती यादें बचपन की

 मुझे आज भी बारम्बार सतातीं  

क्या करूं बचपन लौट नहीं पाता |

 बचपन बीता तुम्हारे दामन की छाया में

आया योवन बचपन को विदा किया

हुई व्यस्त घर गृहस्ती में

फिर बाणप्रस्थ में कदम रखे 

तब भी यादों से दूर न हो पाई  |

 यादों से दूर होने की कल्पना तक नहीं कर सकती   

चाह है मेरी यही बीते सारा जीवन

 तुम्हारे दामन की छात्र छाया में

जन्म जन्मान्तर तक तुम ही रहो माँ मेरी |

आशा 


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