29 मार्च, 2022

यह एक बहाना हो गया

 

यह तो उसे न खोज पाने का   

एक बहाना हो गया

अतिव्यस्त हूँ 

 कहने को हो गया|

ख्याल तक नहीं 

आया उसका

जिससे मिले 

ज़माना हो गया |

तुमने  अपने मन में 

झांकने की

 कोशिश तो की होती 

 भले ही कुछ न दिखा  

अंघकार के सिवाय|

यही सच था जिसका 

 तुम्हें ख्याल नहीं आया |

यह भी नहीं जानना चाहा

यही एक और 

उसे खोज न पाने का

बहाना हो गया |

कई पत्र लिखे लिख कर फाड़े 

पर जाने कहाँ पता खो गया 

गली में घूम घूम कर चक्कर लगाए

 सीटियाँ भी खूब बजाईं

पर वह जाने कहाँ खो गई

लौट कर न आ पाई  |

ना मिलने के सत्तरह  बहाने होते

एक यह भी बहाना हो गया

तुम ही न आईं प्रयत्न मेरा  

यूँ ही  निष्फल हो गया  |

आशा 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच       "कटुक वचन मत बोलना"   (चर्चा अंक-4385)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. सुप्रभात
      आभार सर मेरी रचना को आज के चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए |

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  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 30 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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    उत्तर
    1. धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए |

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  4. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

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  5. इस लुका छिपी के खेल में भी अपना अलग ही आनंद है ! सुन्दर रचना !

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  6. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद भारती दास जी मरी रचनापर टिप्पणी के लिए |

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