यह तो उसे न खोज पाने का
एक बहाना हो गया
अतिव्यस्त हूँ
कहने को हो गया|
ख्याल तक नहीं
आया उसका
जिससे मिले
ज़माना हो गया |
तुमने अपने मन में
झांकने की
कोशिश तो की होती
भले ही कुछ न दिखा
अंघकार के सिवाय|
यही सच था जिसका
तुम्हें ख्याल नहीं आया |
यह भी नहीं जानना चाहा
यही एक और
उसे खोज न पाने का
बहाना हो गया |
कई पत्र लिखे लिख कर फाड़े
पर जाने कहाँ पता खो गया
गली में घूम घूम कर चक्कर लगाए
सीटियाँ भी खूब बजाईं
पर वह जाने कहाँ खो गई
लौट कर न आ पाई |
ना मिलने के सत्तरह बहाने होते
एक यह भी बहाना हो गया
तुम ही न आईं प्रयत्न मेरा
यूँ ही निष्फल हो गया |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच "कटुक वचन मत बोलना" (चर्चा अंक-4385) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंआभार सर मेरी रचना को आज के चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए |
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 30 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए |
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
इस लुका छिपी के खेल में भी अपना अलग ही आनंद है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद भारती दास जी मरी रचनापर टिप्पणी के लिए |