हो स्याही काजल सी काली
या हो लाल रक्त सी
दिल का कागज़ कोरा न रहेगा
कुछ तो लिखा ही जाएगा |
जो मन को भाएगा
जिसमें भावनाओं का रंग होगा
दिलों का मिलन होगा
शब्दों का
संगम होगा |
प्यार की खुशबू होगी
महफिल में तालियाँ बजेंगी
हौसला
अफजाई होगी
मेरी आवाज
की गूँज होगी |
शायद मुझे गलतफहमी हुई है
कि मैं एक सफल कलाकार हूँ
या है चाह मेरी उड़ने की नीलाम्बर में
किसको पता है चाह कब पूर्ण होगी |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच "कटुक वचन मत बोलना" (चर्चा अंक-4385) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंआभार सर मेरी रचना की चर्चामंच के आज के अंक में स्थान देने के लिए |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
और कितना उड़ेंगी ! जिन ऊँचाइयों पर आप हैं वहाँ तो परिंदे भी नहीं पहुँच पाते ! कभी झुक कर नीचे भी देख लिया करिए ! हा हा हा !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद मजेदार टिप्पणी के लिए |
हर चाह कभी न कभी पूर्ण हो ही जाती है
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद अनीता जी मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए |
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआभार सहित धन्यवाद मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए |