मोहब्बत करूं तुमसे
या तुम्हारी अदाओं से
इस दिखावे भरी दुनिया से
या कि अपने आप से |
अभी निर्धारित कर न पाई
जब से जीवन में बहार आई
कुछ सोचा कुछ समझा
पर उंगली खुद की ओर ही मुड़ी|
सबसे सरल सबसे सहज
अपनी ओर झुकाव
लगने लगा मुझे
फिर सोचा शायद यह
खुदगरजी तो नहीं |
फिर विचारा मोहब्बत तुमसे
कोई छलावा न हो
या दुनिया का कोई
दिखावा न हो |
बिना सोचे समझे
कूदना इस क्षेत्र में
क्या ठीक होगा ?
तैरना आता नहीं
पार उतरने का स्वप्न
मन में पालना
कहाँ तक उचित होगा |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 28 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
मेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28 मार्च 2022 ) को 'नहीं रूकती है चेहरे पर सुबह की नरम धूप' (चर्चा अंक 4383) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवादआलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमोहोब्बत सोच विचार कर तर्क वितर्क के साथ नहीं की जाती ! वह तो बस हो जाती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |