किसी की चाहत थी उसकी
वह जब ना मिल पाई
मन ने संयम खोया
बेचैन हुआ उसे पाने को|
हुआ अधीर
और लालाईत
मुंह में पानी आया कई बार
उस तक पहुँचने को
ख्याल ने मन को झझकोरा |
ऐसा क्या था विशेष उसमें
जिससे दूर न होना चाहा
संयम और धैर्य के
मार्ग भी छोड़ दिए
मन के संयम को भी दर किनारे किया
|
संयम ही एक ऐसा मार्ग बचा था
उस तक पहुँचने का
जिसने संयम छोड़ा
मार्ग में भटकता गया |
उससे दूरी बढ़ती गई
मन को संताप देती गई
वह भूला संयम रखने का वादा
यही भूल कर बैठा बेचारा |
जीवन से मात खाई
हारे थके बेचैन गुबार से भरे मन ने
कही का नहीं रखा उसे |
आशा
संयम का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए ! जिसने संयम खोया उसने मान सम्मान प्रतिष्ठा सब खो दी ! सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
धन्यवाद कुमार रमण टिप्पणी के लिए |
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