30 अप्रैल, 2022

राह की खोज में


 


कब तक बैठी राह निहारूं

तुम मुझे भूल गए हो  

तुम जिस मार्ग से गए थे

उस पर से ही चल कर

अपना मार्ग प्रशस्त करूं |

मैंने कितनी बार सोचा

क्यूँ न मैं ही कदम बढाऊँ

क्यूँ अपने वजूद को भूलूँ

मार्ग कितना भी कठिन क्यूँ न हो

उसी मार्ग से तुम तक पहुंचूं |

 अनेक वर्जनाएं मेरी राह रोके खड़ी है

मेरा साहस टूट गया है

लोग क्या कहेंगे ?

हर बार यही बात मेरे कदम रोकती है |

अब मुझमें इतनी शक्ति नहीं है

मैं खुद से कोई निर्णय ले पाऊँ  

या समाज के आगे झुक जाऊं |

कल्पना में जीने से कोई लाभ नहीं है

यदि अपने निर्णय खुद न ले पाई

यह जीवन अकारथ हो जाएगा |

तुम आओ या मुझे बुलाओ

अधर में न लटकाओ

या मुझे इतनी शक्ति से  भर दो

मुझे अपने पैरों पर खड़ी कर दो

मैं बिना रुके तुम तक पहुँच पाऊँ |

आशा  

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारी रचना ! प्रतीक्षा की इंतहा जब हो जाती है तो मन इसी तरह अधीर हो जाता है !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: