11 अप्रैल, 2022

महिमा राम नाम की


 


राम राम बसा मेरे उर में

मैं दूर रहूँ कैसे तुमसे

जब तक राम नहीं होगा मन में

मेरा जीवन अधूरा रहेगा |

दिन रात एक ही रटन

जय  हो सीता राम की राधे श्याम की  

कुछ और नहीं सूझता

जीवन कैसे कटे हरि नाम बिना |

यह परिवर्तन आया कब  कैसे

न जाने कब कितने समय से

उल्झन में हूँ किससे कहूं

कैसे अपने मन का समाधान करूं|

न जाने कितनी परीक्षाएं मेरी लोगे

 अपना अनुकरण सिखा देना 

है यही संजीवनी बूटी 

यही मुझे समझा देना   |

आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-4-22) को "ऐसे थे न‍िराला के राम और राम की शक्तिपूजा" (चर्चा अंक 4398) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    आभार कामिनी जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. भक्ति भाव से युक्त सुन्दर रचना ! बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए

      हटाएं

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