भोला भाला मासूम सा चेहरा
न जाने कितने राज छिपे इसमें
पर नैन चंचल हिरनी से
करते उजागर मन के हर राज को |
जब मुस्कूराहट बाहर आना चाहती
कहीं कोई वर्जना झेलती
मन में दुबक कर रह जाती
झलक उसकी दिखती नैनों में |
प्यारे से दो नैना
झुक जाते शर्मा
कर
रूमाल से नैना छिपाता
वह भोला मासूम बालक |
पलकें झपक झपक जातीं मासूम की
चाहता नहीं मन की गिरह खोलने को
कुछ बोलने सुनने को |
यही मासूमियत आकृष्ट करती
मुझे उस तक पहुँचाने के लिए
मिठास घुली होती उसकी बोली में
उसके अधर चूमना चाहती |
आशा
वाह बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबाल सुलभ क्रिया मन को बहुत लुभाता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
I
हटाएंThanks for the comment
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंवाह ! मासूमियत का सुन्दर शब्द चित्र !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं