एक छत के नीचे
कुछ लोगों के रहने से
घर नहीं होता
घर बनता है संस्कारी लोगों के एक साथ रहने से|
एक ही विचार के
लोग जब एक साथ रहते
बड़े छोटे का लिहाह करते
संस्कारों से बंधे रहते रिश्तों को समझते
सही माने में बने घर में रहते|
एक छत और चार दीवारों से
कभी घर नहीं होता
वहां रह कर भी साथ रहने वाले
अपनेपन से कोसों दूर रहें जब
उनका घर में रहना है बेकार
कभी सुख दुःख में साथ यदि न हो
तब कैसा घर और वहां रहने वाले |
सोच कर भी मन संतप्त होता है
एक छत के नीचे रहने वाले
मिल बाँट कर खाने वाले
सुख दुःख में साथ देने वालों से ही
घर का एहसास होता |
घर चाहे कितना बढ़ा या छोटा हो
यदि प्रेम आपस में न हो
चाहे सुख साधन हों य न हों
घर जाना जाता वहां रहने वालों से |
वहां जा कर जो सुकून मिलता है
दुनिया के किसी भाग में नहीं मिलता
मित्र भाव माता पिता का स्नेह भाई बहन का वहीं मिल पाता जहां मेरा घर होता |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4414 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चा मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
आभार दिलबाग जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच है ! जिस घर में आत्मीयता का अभाव हो उस घर में सुख रंचमात्र को भी नहीं होता !
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