मानव योनी की प्राप्ति के
लिए
घूम चुका चौरासी लाख योनियों
में
कहाँ नहीं भटका कितने रूप
धरे
तब जाकर मानव तन मिला |
है सबसे अलग मिलना श्रेष्ठ योनी
का
यदि मन से स्वीकार किया हो
जितने कर्म किये पहले
फल अब भोग रहा हूँ |
ईश्वर ने सभी कर्मों का
लेखा जोखा रखा है मेरे खाते
में
जिनकी पूर्ती के लिए
जाने कितने जन्म लगेंगे |
जाने कब भाग्य के कुकृत्यों
पर ताला लगेगा
इस भवसागर के जालक से
छुटकारा मिलेगा
अब हूँ सतर्क जाने अनजाने
में
यदि कुछ गलत हो जाए
प्रभु से क्षमा मांग लेता हूँ
जिसने मांगी क्षमा
मानो जग जीत लिया उसने|
भगवान के दिशा निर्देश पर
चल कर
अपना मार्ग प्रशस्त किया है
गुरू से मिली प्रेरणा जब से
पीछे पलट कर न देखा है |
उन कार्यों को कभी
नहीं दोहराया
सांसारिकता को त्यागा
माया मोह से बच कर चला
मुक्ति मार्ग पर चल दिया |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंदार्शनिकता से युक्त गहन रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंकामिनी जी आभार आपका मेरी रचना की सूचना के लिए आज के अंक में |
प्रेरक महोदया, हमारे सनातन आध्यात्म नीव का दर्शन आपकी कलम में, नमन वंदन है आपके ज्ञान को ,
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बलबीर जी टिप्पणी के लिए |