काली अंधेरी रात है
दीखता न कोई राह में
जीवन की शाम ढल गई
जीवन डूबा अंधकार में |
जब हाथ पकड़ कर चले साथ
कितने थे जीवंत
आगे का कभी सोचा नहीं
ख्याल कभी न आया उसका |
जीवन काँटों से भरा है
बहुत कष्ट आते जीवन में
सुख दुःख तो आते जाते हैं
पर सुख होता क्षणिक |
दुःख खेलता लंबी पारी
दौनों से घबराना कैसा
हार जीत लगी रहती है
इस छोटे से जीवन में |
जिसने मानी हार
जिन्दगी की जंग से
वही जंग जीत न पाया
जिसने उसे दूर हटाया
सही जिन्दगी जी पाया |
जितनी साँसे दी भगवान ने
हिसाब उनका तो देना होगा
तुम्हें उसके दरवार में
तुमने कितना न्याय किया उनसे
यही सब सच कहना होगा |
खुद चाहे कुछ भी न किया हो
या किसी ने जबरन करवाया हो
भागीदार तो दौनों रहे
हो उन कृत्यों
में
कोई नहीं बच पाया
दुनिया के प्रपंचों से |
आशा
जीवन की सच्चाई, कोई आगे.... कोई पीछे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंज़िंदगी का यही सबसे बड़ा सच है ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |