08 अप्रैल, 2022

जिन्दगी कैसे चले



            काली अंधेरी रात है

दीखता न कोई राह में

जीवन की शाम ढल गई  

जीवन डूबा  अंधकार में |

जब हाथ पकड़ कर चले साथ

कितने थे जीवंत

आगे का कभी सोचा नहीं

ख्याल कभी न आया उसका |

जीवन काँटों से भरा है

बहुत कष्ट आते जीवन में

सुख दुःख तो आते जाते हैं

पर सुख होता क्षणिक |

दुःख खेलता लंबी पारी

दौनों से घबराना कैसा

हार जीत लगी रहती है

इस छोटे से जीवन में |

जिसने मानी हार

 जिन्दगी की जंग से  

वही जंग जीत न पाया

जिसने उसे दूर हटाया

सही जिन्दगी जी पाया |

जितनी साँसे दी भगवान ने

 हिसाब उनका तो देना होगा

तुम्हें उसके दरवार में

तुमने कितना न्याय किया उनसे

यही सब सच  कहना होगा |

खुद चाहे कुछ भी न किया हो

या किसी ने जबरन करवाया हो

भागीदार तो दौनों  रहे

 हो उन कृत्यों में

कोई नहीं बच पाया

 दुनिया के प्रपंचों से |

आशा

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