कुछ तुमने कहा इशारे से
कुछ उसने समझा सुना
मैंने कोई अर्थ लगाया पर
किसी की समझ में न आया
तुमने क्या कहना चाहा |
इन्हीं उलझनों से निकल न पाई
जीवन की मीमांसा कर न पाई
यही है सार मानव जीवन का
जिससे पार नहीं हो पाई |
कभी अचानक मौन बने रहना
कोई कुछ भी कहे ध्यान न देना
क्या यह तुम्हारी आदत न थी
या अभी ही इसे पाला है |
मुझे भय भी होता है
तुम कहाँ खो गए हो
क्यूँ तुमने मुझे विस्मृत किया है
मैंने क्या कसूर किया है |
जीवन भार सा लगने लगा है
छोटे से जीवन में यह दुराव क्यूँ ?
मानव जीवन का सार यही है
या है कुछ और भी |
आशा
मन के अधीरता अक्सर इन्हीं अनुभूतियों से मिलवाती है ! हर समस्या का समाधान समय के साथ निकल आता है ! उद्विग्न मन की सार्थक अभिव्यक्ति !
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