एक चिड़िया अकेली
खोज रही दाना
पानी
अपने नन्हें
मुन्ने
चूजों के लिए|
वह है इन्तजार
में
कब लकडहारा
आएगा
फलों से भरी
डाली
पर प्रहार करेगा |
नीचे गिरी
डाली से
फल चुनने में
उसे
बड़ी आसानी
होगी
कार्य से हो
कर निवृत्त
वह जल्दी से
घर पहुंचेगी |
यह भी डर सता रहा उसको
कोई घरोंदा न
तोड़ डाले उसका
चूजों को चोट
पहुंचाए
वह कैसे यह
सदमा सहेगी |
जब लकड़ी कटी
उसने धन्यवाद
दिया
लकड़ी काटने
वाले को
और चलदी चौंच
में दाना भर के |
खुद खाया
बच्चों को खिलाया
फिर चल पड़ी नए
बसेरे की तलाश में
शायद यहाँ
उसका
इतना ही समय शेष था |
नन्ही चिड़िया की यही दिनचर्या, यही चिंताएं, यही आशंकाएं और यही सुख का एहसास अपने बच्चों को दाना खिलाने के बाद ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2022) को चर्चा मंच "हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?" (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद सर मेरी रचना की सूचना के लिए |
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिये |
जी बहुत उम्दा ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद दीपक जी टिप्पणी के लिए |
चिङिया के जीवन की झांकी ।
जवाब देंहटाएंप्यारी सी कविता चिङिया की ।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नूपुर जी टिप्पणी के लिए |