09 जून, 2022

संतप्त मन की व्यथा


 

किस्से तोता मैना के

कितनी बार सुने 

 उनसे प्रभावित भी हुए 

पर अधिक बंध न पाए उनमें

उनमें सच की कमी रही 

केवल सतही रंग दिखे वहां |

मन ने बहुत ध्यान दिया 

सोचा विचारा उन कथाओं के अन्दर 

छिपे गूढ़ अर्थों पर 

पर संतुष्टि न मिल पाई उसे |

मन की भूख समाप्त न हो पाई 

कैसे उसे खुश रखूँ सोच में हूँ |

कई और रचनाएं खाखोली 

मन जिन में लगा 

वही किताबें पसंद आईं |

मन को संतुष्टि का चस्का लगा 

 अब वह भी खुश और 

मैं भी प्रसन्न होने लगी |

जल्दी ही मन उचटा 

कुछ नया पढ़ने का मन हुआ 

रोज नई किताबें कहाँ मिलतीं

तभी पुस्तकालय का ख्याल आया |

अब मैं और किताबें रहीं आसपास

मन को चैन आया 

और  मुझे आनंद मिला 

यही क्या कम था 

 मैं कुछ तो सुकून

उसे दे पाई  |

आशा  

   


 

6 टिप्‍पणियां:

  1. मन को चैन देना अपना पहला कर्तव्य
    पुस्तकालय से मन खुश तो पुस्तकालयदे दिया मन को।
    बहुत ही बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  2. पुस्तकालय में ही मन को सन्तुष्टि मिले, मिले तो। पढ़ने की भूख कहाँ मिट पाती है। बहुत सुंदर लिखा।

    जवाब देंहटाएं
  3. किताबों से बढ़ कर सच्चा मित्र और कोई नहीं होता !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: