किस्से तोता मैना के
कितनी बार सुने
उनसे प्रभावित भी हुए
पर अधिक बंध न पाए उनमें
उनमें सच की कमी रही
केवल सतही रंग दिखे वहां |
मन ने बहुत ध्यान दिया
सोचा विचारा उन कथाओं के अन्दर
छिपे गूढ़ अर्थों पर
पर संतुष्टि न मिल पाई उसे |
मन की भूख समाप्त न हो पाई
कैसे उसे खुश रखूँ सोच में हूँ |
कई और रचनाएं खाखोली
मन जिन में लगा
वही किताबें पसंद आईं |
मन को संतुष्टि का चस्का लगा
अब वह भी खुश और
मैं भी प्रसन्न होने लगी |
जल्दी ही मन उचटा
कुछ नया पढ़ने का मन हुआ
रोज नई किताबें कहाँ मिलतीं
तभी पुस्तकालय का ख्याल आया |
अब मैं और किताबें रहीं आसपास
मन को चैन आया
और मुझे आनंद मिला
यही क्या कम था
मैं कुछ तो सुकून
उसे दे पाई |
आशा
मन को चैन देना अपना पहला कर्तव्य
जवाब देंहटाएंपुस्तकालय से मन खुश तो पुस्तकालयदे दिया मन को।
बहुत ही बढ़िया।
Thanks for the comment
हटाएंपुस्तकालय में ही मन को सन्तुष्टि मिले, मिले तो। पढ़ने की भूख कहाँ मिट पाती है। बहुत सुंदर लिखा।
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हटाएंकिताबों से बढ़ कर सच्चा मित्र और कोई नहीं होता !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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