शब्दों को चुन कर
सहेजा एकत्र किया
प्रेम के धागे में पिरो कर
माला बनाई प्यार से
सौरभ से स्निग्ध किया
खुशबू फैली सारे परिसर में |
धोया साहित्यिक विधा के जल से
अलंकारों से सजाया
मन से अद्भुद श्रृंगार किया
फिर तुम्हें पहनाया
उसे दिल से |
एक अद्भुद एहसास जागा मन में
हुई मगन तुममें
दीन दुनिया भूली
क्या तुम ने अनुभव
न किया यह दीवानापन
या जान कर भी अनजान रहे |
यह तो किसी प्रकार का न्याय नहीं
ना ही थी ऎसी अपेक्षा तुमसे
मन को दारुण दुःख हुआ
क्या कोई कमी रही
मेरे प्रयत्नों में|
यदि थोड़ा सा इशारा किया होता
मुझे यह अवमानना
न सहनी पड़ती
मेरी भावनाएं
तुम्हारे कदमों में होती|
मुक्तावली की शोभा
होती तुम्हारे कंठ में |
तुम हो आराध्य मेरे
यही है पर्याप्त मेरे लिए
कभी न कभी तो मेरी
फरियाद सुनोगे |
मुझे किसी से नहीं बांटना तुम्हें
तुम मेरे हो मेरे ही रहोगे |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 जून 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Thanks for the information of my post
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7-6-22) को "पेड़-पौधे लगाएं प्रकृति को प्रदूषण से बचाएं"(चर्चा अंक- 4454) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभार कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
हटाएंसुन्दर सखा भाव की मनोरम अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंकोमल भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति
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