06 जून, 2022

मुक्तावली

 

शब्दों को चुन कर 

 सहेजा एकत्र किया

प्रेम के धागे में पिरो कर 

 माला बनाई प्यार से 

सौरभ से स्निग्ध किया

खुशबू फैली सारे परिसर में |

 धोया साहित्यिक विधा के जल से 

  

अलंकारों से सजाया

मन से अद्भुद श्रृंगार किया

फिर तुम्हें  पहनाया 

उसे दिल से |

एक अद्भुद एहसास जागा मन में

हुई मगन तुममें

 दीन दुनिया भूली

क्या तुम ने अनुभव

 न किया यह दीवानापन

या जान कर भी अनजान रहे |

यह तो किसी प्रकार का न्याय नहीं

ना ही थी ऎसी अपेक्षा तुमसे

मन को दारुण दुःख हुआ

क्या कोई कमी रही 

मेरे प्रयत्नों में|

यदि थोड़ा सा इशारा  किया होता

मुझे यह अवमानना

 न सहनी पड़ती

मेरी भावनाएं 

 तुम्हारे कदमों में होती|

मुक्तावली की शोभा

 होती तुम्हारे कंठ में |

तुम हो आराध्य मेरे 

यही है पर्याप्त मेरे लिए  

कभी न कभी तो मेरी

 फरियाद सुनोगे |

मुझे किसी से नहीं बांटना तुम्हें

तुम मेरे हो मेरे ही रहोगे |

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7-6-22) को "पेड़-पौधे लगाएं प्रकृति को प्रदूषण से बचाएं"(चर्चा अंक- 4454) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

      हटाएं
  3. सुन्दर सखा भाव की मनोरम अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया रचना !

    जवाब देंहटाएं
  4. कोमल भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: