जल की नन्हीं बूंदे आतीं
काली घटाएं आपस में टकरातीं
व्योम में बिजली चमकती जब टकराती
वर्षा ऋतु आगमन का होता आगाज |
बादल काले कजरारे उमढ घुमढ आते
आपस में टकराते गरजते बरसते
वर्षा की उम्मीद जगाते
खेतों में नन्हें पौधे अंकुरित होते |
होती जब मखमली हरियाली
व्योम में धुंधलका छा जाता
जब भी बादल समूह में आते
कभी काले कभी भूरे दीखते
अनूठा मनमोहक नजारा होता |
जब भी वे आपस में टकराते बादल
तीव्र गर्जना होती
दिल दहल जाते सब के
सोते बच्चे चौंक कर उठते |
पर रिमझिम वारिश होते ही
वर्षा में भीगने को लालाइत होते
सारी सीमाएं तोड़ कर
भागते आंगन की ओर |
यही तो बचपन है
प्रकृति में जीने का
भीगने खेलने नहाने का
आनंद है कुछ और |
आशा
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.7.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4504 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
Thanks for the information of my post
हटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा है
जवाब देंहटाएंThanks for the comment for the past
हटाएंवर्षा में आगमन का सुन्दर चित्रण !
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