26 जुलाई, 2022

मुझे शिकायत है यह कैसे जानोंगे

 


                                                             हर बात पर मुझसे बहस करना 

नीचा दिखाने से बाज न आना 

जब आदत ही बनाली तुमने 

 तुम कैसे जानोगे मुझे कैसे पहचानोंगे |

तुमको   प्यार से बोलना न आया 

मिठास शब्दों में घोलना न आया 

कभी कुछ नया  सीखा ही नहीं तुमने 

 मेरी शिकायत  को कैसे समझोगे |

 मैंने ही पहल की सुलह सफाई की 

आगे कदम बढाए मैंने पर तुम न जान पाए 

मेरे मन में क्या है मैं क्या सोच रही हूँ 

ना समझे ना ही कोशिश की मुझे समझने की |

यही तो शिकायत है मेरी 

तुमने  मुझ पर ध्यान ही  नहीं दिया 

 किसी कार्य के योग्य  न समझा 

जब भी आगे बढ़ना चाहा 

पीछे से पैरों को  खीच लिया |

कभी गिरी गिर कर न सम्हली 

मुझ में  हीन भाव उत्पन्न हुआ 

मैं क्या करती कैसे शिकायत करती 

तुमने  मुझे अपना न   समझा  |

मुझे शिकायत है यही तुमसे 

 पलट कर ना   देखा कभी  तुमने 

मैं भी हूँ पीछे तुम्हारे |

तुम्हारा हक़ है मुझ पर

 यही बहुत है मेरे लिए 

अपना  हक़ मैं भूली नहीं

जीना चाहती हूँ अधिकार से |

आशा 



2 टिप्‍पणियां:

  1. सच है दुःख होता है जब मन की कोमल भावनाओं की उपेक्षा अवहेलना होती है ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  2. धन्यवाद साधना टिप्पणी के किये |

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