हर बात पर मुझसे बहस करना
नीचा दिखाने से बाज न आना
जब आदत ही बनाली तुमने
तुम कैसे जानोगे मुझे कैसे पहचानोंगे |
तुमको प्यार से बोलना न आया
मिठास शब्दों में घोलना न आया
कभी कुछ नया सीखा ही नहीं तुमने
मेरी शिकायत को कैसे समझोगे |
मैंने ही पहल की सुलह सफाई की
आगे कदम बढाए मैंने पर तुम न जान पाए
मेरे मन में क्या है मैं क्या सोच रही हूँ
ना समझे ना ही कोशिश की मुझे समझने की |
यही तो शिकायत है मेरी
तुमने मुझ पर ध्यान ही नहीं दिया
किसी कार्य के योग्य न समझा
जब भी आगे बढ़ना चाहा
पीछे से पैरों को खीच लिया |
कभी गिरी गिर कर न सम्हली
मुझ में हीन भाव उत्पन्न हुआ
मैं क्या करती कैसे शिकायत करती
तुमने मुझे अपना न समझा |
मुझे शिकायत है यही तुमसे
पलट कर ना देखा कभी तुमने
मैं भी हूँ पीछे तुम्हारे |
तुम्हारा हक़ है मुझ पर
यही बहुत है मेरे लिए
अपना हक़ मैं भूली नहीं
जीना चाहती हूँ अधिकार से |
आशा
सच है दुःख होता है जब मन की कोमल भावनाओं की उपेक्षा अवहेलना होती है ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के किये |
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