22 अगस्त, 2022

आज कवि सम्मेलन है -


                           गहराई शाम है महफिल सजने को है  

अभी तक साज सज्जा वाले  नहीं आए 

श्रोताओं के आगमन से रौनक हो चली है 

कवियों की स्पर्धा है आज 

नवीन  काव्य  विधाओं के बारे में लिखने की |

 भारत की हीरक जयंती मनाने के लिए 

खुले पांडाल में   ठंडी हवा से 

 सिहरन जब होती है 

रचना के भी  पंख लग जाते हैं

 शब्द मुखुर हो जाते हैं 

एक के बाद एक नये पुराने कवियों का 

 तांता लग जाता  है 

अपनी प्रस्तुति मंच पर पेश करने में

वाह वाह भी कम  नहीं होती  |

नये कवि  जब मोर्चा सम्हालते  

उनमें दर्प  गजब का होता 

  एक अनोखा अंदाज दिखाई देता

 उनकी प्रस्तुति में 

 घबरा कर पहले  इधर उधर देखते

 खांसते खखारते   फिर

  सकुचाते  ध्वनि  विस्तारक यंत्र  पर आ ही जाते  |

कवियों की प्रस्तुति पर  श्रोताओं की वाह वाह 

और पंडाल की रौनक

 कार्य कर्ताओं की गहमा गहमी 

 जब एक साथ हों अद्भुद नजारा होता

 मन   परमानन्द में खो जाता है

 सभी  आयु वर्ग के लोग आनंद उठाते 

अपनी अपनी पसंद पर दाद देते  |

इस  आयोजन में  होता  बड़ा  आनन्द आता है 

 बहुत बेसब्री से इन्तजार रहता है 

अच्छी कवितायेँ सुनने को मिलतीं 

पठनीय और भावपूर्ण रचनाओं के  

 कवियों को काव्य  मंच मिलता  है 

और  श्रोताओं को बैठक | 

आशा सक्सेना 

8 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलमंगलवार (21-8-22} को "मेरे नैनों में श्याम बस जाना"(चर्चा अंक 4530) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. वाह! जीवंत वर्णन कवि सम्मेलनों की ऊष्मा का।

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  3. कवि सम्मेलनों का सजीव चित्रण कर दिया आपने ! सुन्दर रचना !

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