20 सितंबर, 2022

उलझन जीवन की




                               जीवन जीने का मन न हुआ

कितना भी यत्न किया

एक बार जो मोह की गाँठ लगी

खुल नहीं पाई तोड़नी पडीं |

मन की उदासी कम होने का

नाम ही  नहीं लेती

 बिना बात उलझाए रखती

यह भी  नहीं बताती कारण क्या हुआ |

कारण यदि पता होता

इतनी उलझन न होती

कोई  मार्ग निकल ही आता

जीवन में उदासी न होती |

आखिर कब तक उलझी रहूँगी

दुनिया के प्रपंचों में

किस तरह मुक्ति पाऊँगी

दुनियादारी के झमेलों से |

हे प्रभु मदद करो मेरी

तुम्हारी शरण में मैं आई

इतनी दया करो मुझ पर

मन की शांति बापिस करो मेरी |

आशा सक्सेना 

2 टिप्‍पणियां:

  1. उदासी का यह अस्थाई फेज़ भी गुज़र जाएगा ! सकारात्मक रहिये और सृजन में ही मन का सुकून ढूँँढिए !

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