जीवन हुआ है भार
किसी से क्या कहिये
मन हुआ बेहाल
किसी से क्या कहिये
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जन्मदिन था आज तुम्हारा
पर तुमने याद न किया
ना ही फोन किया
भूलीं सभी संस्कार |
मन को लगी ठेस मैं सह न पाई
मेरे दुःख को तुमने न समझा
केवल अपने तक सीमित रहीं
है कैसा अन्याय तुम्हारा तुम भूलीं |
यह है कैसा व्यबहार वाह
किसी से क्या कहिये
बात मन की मन में रही
राई का पहाड़ बनाया तुमने |
हमने भी प्यार किया था तुमको
धन दौलत नहीं दी थी पर मन में
जगह तुम्हारी थी सबसे ऊपर
यह तुम भूलीं पर
मैं नहीं भूल पाई |
तुम्हें भी याद तो आई होगी हमारी
थोड़ी औपचारिकता भी न निभा पाई तुम
हो आज की पैदाइश हम यह तो भूले
केवल हमारी मुन्ना ही याद रही मुझको |
मन को ठेस लगी मेरे सोच न पाई
यह माया मोह किस लिए
किस के लिए आज की दुनिया मैं
सच कहा है सोचा समझा है
देवी के पूजन अर्चन में |
आशा सक्सेना
वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंमन की व्यथा की मार्मिक अभिव्यक्ति ! सुन्दर सृजन !
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