14 नवंबर, 2022

दिग दिगंत में



दिग दिगंत में अपने आसपास

कुछ ऐसा है जो खींच रहा उसको

 अपने  पास उस में खो जाने के लिए

जीवन जीवंत बनाने के लिए |

जागती आँखों से जो देखा उसने

 स्वप्न में न  देखा था कभी

वह  उड़ चली व्योम में ऊंचाई तक

पर न पहुँच पाई आदित्य तक  |

ताप सहन न कर पाई जो था आवश्यक

गंतव्य तक पहुँचाने  के लिए

उसने सफलता को नजदीक पाया

मन खुशियों से भर आया |

सफलता अपनी इतने पास देखी न थी

 नैना भर आए थे उसके यह हार देख

दोबारा कोशिश की फिर से  

अब दूरी कुछ कम हुई दौनों में

पर पूरी सफल न हो पाई |

आस्था ईश्वर में जागी आत्मविश्वास मन में

लिया नाम प्रभू का साहस जुटाया

अब बहुत आसान हुआ वहां पहुँच मार्ग

सफलता की चमक  रही  चहरे पर |

आशा सक्सेना


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