मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है
किसी से जो कह न पाई
पर तुम ने भी सुनी अनसुनी कर दी
मन मेरा आहत हुआ फिर भी बहुत धैर्य रखा |
जब भी कुछ कहना चाहा गलत नहीं कहा है
मैंने तो सही राह चुनी थी वह भी स्वविवेक से
किसी का प्रभाव नहीं था मुझ पर
तुमको कैसे समझाऊँ जान नहीं पाई अब तक |
तुमने मुझको कितना समझा है
अपनाया है दिल से या नहीं
कुछ तो कहो मुझसे या यूँ ही मुझे बहकाओगे
मन की कहूं या नहीं मैं कैसे जानूं |
सही मार्ग दिखलाओ मैंने तुम्हें देवता माना
अपने मन को खोल कर रख दिया तुम्हारे समक्ष
तुमने फिर भी ध्यान न दिया मेरी बात पर
यही वर्ताव मुझे दुविधा में रखे है कैसे पार करूं उसको |
मन दुविधा में फंसा है इस से निकलना चाहती हूँ
तुमसे अपने मन की बातें करना चाहती हूँ
फिर तुम जो सलाह दोगे मुझे स्वीकार होगा
मन कुछ तो हल्का होगा |
आशा सक्सेना
वाह ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्य्वाद साधना टिप्पणी के लिए |
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