तुम कब तक निहारते रहोगे उसे
जब श्याम ने समझाया तुम्हें
इतनी समझ न आई तुम्हें
क्या लाभ तुम्हें समझाने का
|
मीठी मधुर वाणी तुम्हारी
कटु से कटुतर होती गई
उसके कारण मन विद्रोही हुआ
किसी की कदर न जानी उसने |
यही कमी प्रारम्भ से थी उसमें
तुमने कभी टोका नहीं उसको
उसने सर उठाया अब तो
क्या फायदा ऎसा हटधर्मी
होने का |
ना तो माँ ने कुछ सिखाया उसे
ना ही कुछ औरों से सीखना चाहा उसने
उसके व्यबहार से लोगों ने
बुरा भला कहा उसे
मन को और संतप्त किया |
इसमें किस का अहित हुआ
पर तुम तो समझदार थे
तब भी न समझा पाए उसको
कह दिया वह तो मनमानी करती है |
सोचो हो तुम किसके गुलाम
उसके या अपनी भावनाओं की तल्खी के
कितना भी गलत हुआ तुमने किया या उसने
उसको समझाने से क्या फायदा हो जो कुबुद्धि |
हो बुद्धि का अभाव जिसमें वह
किस काम का
हो हुस्न के दीवाने या अन्य आकर्षण तुम्हें रिझाता
खुद सोचना उसको भी समझाना
क्या सही क्या गलत उसी से
सलाह लेना |
आशा सक्सेना
सार्थक चिंतन ! प्रेरक रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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