30 नवंबर, 2022

जब हंसी का पात्र बना


 


पहले फिसलना

फिर  गिरना

और  सम्हल कर

 उठने का प्रयत्न  करना |

कुछ भी नया नहीं

बड़ा सामान्य सा कार्य

 बचपन में होता

 आए दिन का कार्य  |

 जब उम्र बढ़ने लगती

  हास्यप्रद स्थिति में    

 परिवर्तित होती गई  |

बहुत कठिन होता

साधारण से कार्य का

जगजाहिर होना

किसी को  हंसने का अवसर

खोजना न पड़ता |

एक दिन सड़क पर

पानी भरा था

पर पैर फिसला

गहरी चोट लगी |

उठना कठिन हुआ

पास वाले भाईसाहब ने  

अपना हाथ बढाया

सम्हाल कर उठाया |

मदद तो की पर

हंसने का अवसर न छोड़ा

शरीर बहुत गोल मटोल था

उस पर ही हँसी आई |

यही बात उनने सुनाई

रस ले कर  पड़ोसियों को

मन में कुंठा भरी

पर क्या करता | 


आशा सक्सेना 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. गिरना उठना फिर गिरना फिर उठना यही हर इंसान के साथ होता है ! जो हँसते हैं उनके साथ भी और जो चुप रहते हैं उनके साथ भी ! सूक्ष्म अवलोकन !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तुमने सही सोचा |धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

      हटाएं

Your reply here: