पहले फिसलना 
फिर  गिरना 
और  सम्हल कर
 उठने का प्रयत्न  करना |
कुछ भी नया नहीं 
बड़ा सामान्य सा कार्य
 बचपन में होता 
 आए दिन का कार्य  |
 जब उम्र बढ़ने लगती 
  हास्यप्रद स्थिति में    
 परिवर्तित होती गई  |
बहुत कठिन होता 
साधारण से कार्य का 
जगजाहिर होना 
किसी को  हंसने का अवसर 
खोजना न पड़ता |
एक दिन सड़क पर 
पानी भरा था 
पर पैर फिसला 
गहरी चोट लगी |
उठना कठिन हुआ 
पास वाले भाईसाहब ने  
अपना हाथ बढाया 
सम्हाल कर उठाया |
मदद तो की पर 
हंसने का अवसर न छोड़ा 
शरीर बहुत गोल मटोल था 
उस पर ही हँसी आई |
यही बात उनने सुनाई 
रस ले कर  पड़ोसियों को 
मन में कुंठा भरी 
पर क्या करता |
आशा सक्सेना

 
 
गिरना उठना फिर गिरना फिर उठना यही हर इंसान के साथ होता है ! जो हँसते हैं उनके साथ भी और जो चुप रहते हैं उनके साथ भी ! सूक्ष्म अवलोकन !
जवाब देंहटाएंतुमने सही सोचा |धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए बेनामीं जी |
हटाएं