01 दिसंबर, 2022

अहम उसका

 


उसने दिखाया जलवा अपना

किसी से कम अपने को न समझा

 यही आदत उसे ले डूबी

अपने अहम् के डबरे  में |

कितनी बार समझाया उसको

किसी से अंटस लेना सही नहीं

हर बार अहम् हारा  झगड़े में

मन को झटका लगा दिल टूटा |

किसी की  दया का पात्र न बन पाया

उसका कार्य असफल रहा अधूरे में

मन को दूसरा झटका लगा जब  

 वह पहुंचा एक  समाज के कार्यक्रम में |

उसने खुद को बहुत कुछ समझा था

तब यही गलतफ़हमी पाली थी उसने

था कुछ भी  नहीं पर खुद को

 सीमा से अधिक  समझा था   |

यहीं  उसने मात खाई

जब  एक जलजला आया

वह उसके  बहाव में बहता गया

 असफल रहा वह  भवसागर छोड़ने  में |

अब मन को झटका लगा अंतिम

सर उठा न  पाया वह

अहम से  जूझता रहा आखिर तक

उससे पार पा नहीं सका |

 

आशा सक्सेना

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