उसने दिखाया जलवा अपना 
किसी से कम अपने को न समझा
 यही आदत उसे ले डूबी 
अपने अहम् के डबरे  में |
कितनी बार समझाया उसको 
किसी से अंटस लेना सही नहीं
हर बार अहम् हारा  झगड़े में 
मन को झटका लगा दिल टूटा |
किसी की  दया का पात्र न बन पाया 
उसका कार्य असफल रहा अधूरे में
मन को दूसरा झटका लगा जब  
 वह पहुंचा एक  समाज के कार्यक्रम में |
उसने खुद को बहुत कुछ समझा
था 
तब यही गलतफ़हमी पाली थी
उसने 
था कुछ भी  नहीं पर खुद को 
 सीमा से अधिक  समझा था   |
यहीं  उसने मात खाई
जब  एक जलजला आया 
वह उसके  बहाव में बहता गया 
 असफल रहा वह  भवसागर छोड़ने  में |
अब मन को झटका लगा अंतिम 
सर उठा न  पाया वह 
अहम से  जूझता रहा आखिर तक 
उससे पार पा नहीं सका |
आशा सक्सेना 
 
 
इंसान को अक्सर उसका अहम् ही ले डूबता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|
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