आज सुबह होने के पहले
एक सपना देखा मैंने
सुन्दर सी पहने हुए थी
परियों सी पोशाक |
पंख लगाए रंग बिरंगे
तितलियों से ले कर
उड़ी जा रही नीलाम्बर में
कोई न था साथ मेरे |
पहले तो भय लगा
पर ऊपर जाते ही
वह तिरोहित हुआ
उड़ी और बेग से |
अचानक देखा एक अजनबी
राह रोके खड़ा था
उसने पूंछा जाती हो कहाँ
किससे मिलने |
मैं कहीं भी जाऊं
तुम्हें इससे क्या
हूँ परियों की शहजादी
घूमने निकली हूँ |
जानना चाहती हूँ
समस्याएं प्रजा की
कितने परिवर्तन हुए
किसकी सलाह से |
किसी ने की थी शिकायत
मैं जानना चाहती हूँ
है यह किसकी हिमाकत
उसे शीघ्र ही बंदी बनाऊंगी |
साथ ले जाऊंगी
सजा दिलाऊंगी
जैसे ही वह दिखेगा
हथकड़ियां पहनाऊँगी |
बंदी बना कर ले जाऊंगी
वह हंसा और बोला
कहीं वह मैं तो नहीं
जिसे तुम खोज रही थीं |
चलो साथ चलता हूँ
तुम्हारे हाथ पकड़
सूर्य का आगमन हुआ
चिड़ियाँ चहकीं नींद टूट गई
सपना अधूरा रह गया |
जिसे साथ ले जाना था
वही मेरे पास खड़ा था
मैं चौंकी सकुचाई
क्या तुम ही थे |
आशा सक्सेना
सुन्दर कल्पना और प्यारा सपना ! बढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
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