07 दिसंबर, 2022

घर की रोनक


 


मनु  को कभी ना तुमने समझा

ना ही मेरा अस्तित्व पहचाना

समझा उसे  एक नादान बच्चा

और मुझे उसकी आया |

यदि हम यहाँ  नहीं  होते

 घर कभी घर नहीं  हो पाता

 उसमें  कोई बस्ती  नहीं  होती

जब तुम आते घर वीरान नजर आता |

कोई ना आता पास तुम्हारे 

 घर की बस्ती होती वहां रहने वालों से

 यदि हम ना होते घर कभी घर नहीं होता

 घर का कोई वजूद नहीं होता |

जब तक तुम नहीं आते घर वीरान नजर आता

कोई ना आता पास तुम्हारे |

किसी की वर्जनाएँ बाल मन   सह नहीं  पाता

यदि किसी ने कुछ कहा बड़ा शोर होता 

वह किसी से न सम्हलता दोष मुझ पर आता |

यदि तुमने उसे न समझाया होता वह नाराज होता रूठा रहता

 लम्बे समय तक अकड़ा रहता

दो  चॉकलेट  लेकर ही शांत होता

फिर गले से लिपटा  जाता |

आशा सक्सेना

 


9 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद यशोदा जी टिप्पणी के लिए |

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  2. बच्चों से ही घर में रौनक होती है
    बहुत सुंदर।

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  3. मनु और स्नेही महतारी की व्यथा कथा।

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  4. बालमन का सुन्दर चित्रण ! सुन्दर कविता !

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